( हमारे गाँव की रमिया काकी जो पुरे गाँव में सबके दुःख -सुख की साथी थी, मगर अपने ही घर में दर- बदर . उनके ऊपर मैंने ये कविता ८ मई १९९७ को लिखी थी.............)
तुमने भी तो काटा था बनवास
मगर किसी ने भी तो
नहीं कहा सीता सा तुम्हें
गलाया यौवन को
जवानी को दहलीज पर
किस तप से कम था
तुम्हारा वो तप
मगर किसी ने भी तो नहीं
अहिल्या सा कहा
तुमने अपने खून की
एक- एक बूँद को
निंचोड़ डाला था
बनाकर पसीना
अपने लिए नहीं
सिर्फ दूसरों को
जिंदा रखने के लिए
हार गया था यमराज
तुम्हारे सामने भी
मगर किसी ने भी तो नहीं
सावित्री सा कहा
मौत को जीता तुमने
अपने लिए नहीं
वरना औरों के लिए
मगर तुम भुला दी गयी
हक़दार कोई और हो गया
तुम्हारे वजूद का. .
मगर किसी ने भी तो
नहीं कहा सीता सा तुम्हें
गलाया यौवन को
जवानी को दहलीज पर
किस तप से कम था
तुम्हारा वो तप
मगर किसी ने भी तो नहीं
अहिल्या सा कहा
तुमने अपने खून की
एक- एक बूँद को
निंचोड़ डाला था
बनाकर पसीना
अपने लिए नहीं
सिर्फ दूसरों को
जिंदा रखने के लिए
हार गया था यमराज
तुम्हारे सामने भी
मगर किसी ने भी तो नहीं
सावित्री सा कहा
मौत को जीता तुमने
अपने लिए नहीं
वरना औरों के लिए
मगर तुम भुला दी गयी
हक़दार कोई और हो गया
तुम्हारे वजूद का. .
बहुत सुन्दर कविता..बधाई.
जवाब देंहटाएंमैंने भी तो स्कूल में क्रिसमस मनाया..बड़ा मजा आया.
जवाब देंहटाएंसभी लोगों को क्रिसमस की ढेर सारी बधाई.
मगर तुम भुला दी गयी
जवाब देंहटाएंहक़दार कोई और हो गया
तुम्हारे वजूद का. ...रमिया काकी की व्यथा को शब्द देती मार्मिक कविता.
भाई मजा आ गया अन्सुवो के साथ में
जवाब देंहटाएंउपेन जी ने तो वाकई बहुत डूबकर लिखा. रमिया काकी जैसे उदहारण अब भी समाज में दिख जाते हैं, पर व्यथा वहीँ की वही है...
जवाब देंहटाएंबढ़िया कविता उपेन जी, बधाई।
जवाब देंहटाएंरमिया काकी जैसी कितनी ही हैं समाज में आपने उनकी व्यथा बेहतरीन ढंग से चित्रित की है.
जवाब देंहटाएं@ पाखी बिटिया
जवाब देंहटाएं@ मु. गाजी जी
@ तारकेश्वर भाई जी
@ सोमेश जी
@ आकांक्षा जी
@ शिखा जी
आप सभी लोंगों का हौसला बढ़ने के लिये आभार.
bahut sundar kavita.
जवाब देंहटाएंरमिया काकी की व्यथा बेहतरीन ढंग से चित्रित की है| आभार|
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर शब्द-चित्र...बेहतरीन कविता..बधाई.
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