नाम तो बनारस का लगा हुआ हैं, क्या करे जैसे अमिताभ बच्चन जी ने बनारसी पान को प्रसिद्धी दिलाई हैं , उसी तरह से बनारस के नाम पर बनारसी सदियों कि प्रसिद्धी मिली हुई हैं.
आजमगढ़ से मात्र १५ किलोमीटर कि दुरी पर हैं, छोटा लेकिन आज बहुत ही बड़ा सा क़स्बा जिसका नाम हैं मुबारक पुर. मुबारक पुर कि आर्थिक स्थिति लगभग ९०% तक सिर्फ बनारसी साड़ियों पर ही टिकी हुई हैं. कसबे के अन्दर और बाहर रहने वाले जुलाहे पूरी तरह से बनारसी साड़ी बनाने में लगे रहते हैं, लेकिन आज कल माहौल बदल गया हैं, अब कौन जुलाहा कौन पठान और कौन हिन्दू सभी इस काम में लगे हुए हैं.
छोटे -छोटे गाँव में गरीब परिवार भी अब इस काम को अपने अपने घरो में करने लगे हैं.
आज जरुरत हैं इस तरह के छोटे-छोटे रोजगार को प्रोत्सहित करने के लिए. लेकिन राज्य कि सरकार इस तरफ बिलकुल भी ध्यान नहीं दे रही हैं.
एक वाजिब मुद्दे की ओर ध्यान उठाने के लिए गिरी जी साधुवाद के पात्र हैं.
जवाब देंहटाएंसब राजनीती का शिकार हैं...
जवाब देंहटाएंIs or dhyan dene ki jarurat hai.
जवाब देंहटाएंयादव जी नमस्कार, आपसे एक विनती हैं कि आप हमारे इस ब्लॉग को चिट्ठाजगत से जोड़े, तभी ज्यादा से ज्यादा लोग इसे पढेंगे.
जवाब देंहटाएंhttp://taarkeshwargiri.blogspot.com/2010/12/blog-post_05.html
जवाब देंहटाएंPlease read above link
तारकेश्वर जी, आपका ब्लॉग देखा..अच्छा लिखते हैं आप. आपका ब्लॉग देखकर ही आपको लिंक भेजा था. चिट्ठाजगत पर हम इसे पंजीकृत करा रहे हैं. सहयोग बनाये रखें.
जवाब देंहटाएंजी बहुत अच्छा.
जवाब देंहटाएंबनारसी साड़ियाँ तो काफी मशहूर हैं, पर बुनकरों का यह हाल...सोचनीय.
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