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मंगलवार, मार्च 08, 2011
अन्तर्राष्ट्रीय महिला दिवस पर एक कविता
आज अन्तर्राष्ट्रीय महिला दिवस की 101 वीं वर्षगांठ है. इस अवसर पर एक कविता 'शब्द-सृजन की ओर' ब्लॉग पर लिखी. इसे यहाँ भी प्रस्तुत कर रहा हूँ-
नहीं हूँ मैं माँस-मज्जा का एक पिंड
जिसे जब तुम चाहो जला दोगे
नहीं हूँ मैं एक शरीर मात्र
जिसे जब तुम चाहो भोग लोगे
नहीं हूँ मैं शादी के नाम पर अर्पित कन्या
जिसे जब तुम चाहो छोड़ दोगे
नहीं हूँ मैं कपड़ों में लिपटी एक चीज
जिसे जब तुम चाहो तमाशा बना दोगे।
मैं एक भाव हूँ, विचार हूँ
मेरा एक स्वतंत्र अस्तित्व है
ठीक वैसे ही, जैसे तुम्हारा
अगर तुम्हारे बिना दुनिया नहीं है
तो मेरे बिना भी यह दुनिया नहीं है।
फिर बताओं
तुम क्यों अबला मानते हो मुझे
क्यों पग-पग पर तिरस्कृत करते हो मुझे
क्या देह का बल ही सब कुछ है
आत्मबल कुछ नहीं
खामोश क्यों हो
जवाब क्यों नहीं देते........?
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Happy Womens Day !!
जवाब देंहटाएंअंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस पर आप सभी को बधाई और शुभकामनायें.
जवाब देंहटाएंक्या देह का बल ही सब कुछ है
जवाब देंहटाएंआत्मबल कुछ नहीं
खामोश क्यों हो
जवाब क्यों नहीं देते........?
महिला दिवस पर के. के. यादव जी की सशक्त कविता...बधाई.
महिला दिवस पर नारी की आवाज़ को उठाती लाजवाब पोस्ट. साधुवाद स्वीकारें इसके लिए.
जवाब देंहटाएंबहुत उम्दा...
जवाब देंहटाएंमहिला दिवस पर हार्दिक शुभकामनाएँ.
आपकी अच्छी कविता। इस अवसर पर राजेंद्र स्वर्णकार की नवीनतम कविता की दो पंक्तियाँ -
जवाब देंहटाएंअब यह कोई न समझे कि नारी पुरुष की जूती है,
हम धूल नहीं हैं पैरों की, नभ चाँद सितारे छूती हैं।
नारी शक्ति को नमन करना चाहिए।
खूबसूरत भाव ...सार्थक प्रश्न
जवाब देंहटाएंमहिला दिवस पर सार्थक प्रस्तुति...सुन्दर भावों से सुसज्जित कविता.
जवाब देंहटाएंमहिला दिवस पर सहज और सार्थक पोस्ट..शुभकामनायें.
जवाब देंहटाएंsashakt prastuti
जवाब देंहटाएंफिर बताओं
जवाब देंहटाएंतुम क्यों अबला मानते हो मुझे
क्यों पग-पग पर तिरस्कृत करते हो मुझे
*****************
सुन्दर शब्दों में गुथी गई नारी- व्यथा...
बहुत बढ़िया लिखा भैया. आप सार्थक लेखन करते हैं..जय हो.
जवाब देंहटाएंबहुत ही भावपूर्ण और विचारणीय कविता............. सुंदर प्रस्तुति.
जवाब देंहटाएंजवाब भी हम ही देते हैं. वो क्या देंगे.
जवाब देंहटाएंहमसे है दुनिया का अस्तित्व.
उन्हें अभी भी जानना बाकि है, जो हमसे ही बने हैं.