सोहेल तनवीर और कामरान खान एक सिक्के के दो पहलू. एक के देश पर आतंकवादी का ठप्पा है तो दूसरे के जिले पर।
दोनों में अंतर इतना है कि पाकिस्तान का होने के नाते सोहेल आईपीएल में नहीं खेल पा रहा है, वहीं उसकी जगह कामरान को अवसर मिला है. बाएं हाथ से गेंदबाजी करने वाले सोहेल ने जिस तरह राजस्थान रायल्स को पहला आईपीएल जिताने में अहम भूमिका अदा की थी, उसी भूमिका में बाएं हाथ से 140 किमी की रफ्तार से गेंद फेकने वाले कामरान की यार्कर अपने विरोधियों के लिए खतरनाक साबित हो रही है. राजस्थान रायल्स के कोच डेरिन बैरी के शब्दों में “हमें एक युवा खिलाड़ी की जरुरत थी जो मैच का पासा पलट सके.” शायद इसी खूबी के चलते शेनवार्न ने कामरान का निक नेम बवंडर रखा है. इस बवंडर को क्रिकेटिया सांचे में ढालने वाले पूर्व रणजी खिलाड़ी उबैद कमाल कहते हैं “वो मेरी कल्पनाओं का इकबाल है.”
इस बवंडर की जड़ो की तलाश में जब पिछले दिनों आजमगढ़ रोडवेज पर पहुंचा तो चाय की दुकानों से लेकर पेपर वालों तक हर तरफ कामरान के उस विकेट की चर्चा हो रही थी जिसे उसने हाल ही में दिल्ली डेयरडेविल्स के खिलाफ लिया था. बातों ही बातों में चाय की दुकान पर बैठे मनोज सिंह से मुखातिब हुआ. बकौल मनोज सिंह “एक महीना पहले आया था तब उसे हम स्टेडियम ले गए थे. ऐसी शानदार गेंद फेंक रहा था कि हमें विश्वास नहीं हो रहा था कि ये वही कामरान है.” मनोज आजमगढ़ क्रिकेट संघ के सहसचिव हैं. उन्होंने बताया कि कामरान का घर आजमगढ़-मऊ जिले की सरहद पर बसे नदवासराय में है. वैसे तो उसका घर मऊ जिले में है पर उसने क्रिकेट सीखा और खेला आजमगढ़ में ही. इसलिए आजमगढ़ उसकी पहचान बन गयी.
शहर के वरिष्ठ रंगकर्मी सुनील कुमार दत्ता हमारी ओर इशारा करते हुए कहते हैं कि आजमगढ़ मीडिया का भुक्त भोगी है, कल वही लोग यहां की गलियों में खेलने वाले बच्चों के फुटेज दिखा-दिखाकर हमको आतंकवादी कह रहे थे, आज वही लोग अपनी जरुरतों के चलते फिर आ गए हैं.देश में हुई आतंकवादी घटनाओं के बाद आजमगढ़ के लोगों के पकड़े जाने और संदिग्ध बाटला हाउस एनकाउंटर के बाद आज इस जिले के लोगों को लखनऊ, दिल्ली, मुबंई समेत पूरे देश में किराये पर कमरे तक नहीं मिल रहे हैं. क्रिकेट खिलाड़ी पंकज पाण्डे कहते हैं कि जो लोग हमें बदनाम कर रहे हैं, उन्हें जानना चाहिए कि कामरान ही नहीं अब्दुल्ला इकबाल जैसे आईपीएल खिलाड़ी से लेकर नोमान जैसे यूपी के सबसे तेज बालर आजमगढ़ की ही देन हैं. पंकज के साथ अब्दुल्ला के घर बदरका जाना हुआ. जहां अब्दुल्ला पुकारने पर उसकी छोटी बहन आयशा ने दरवाजा खोला- “भाईजान खलने गए हैं.” बाद में नियाज अहमद से मुलाकात हुई जो बेटे के क्रिकेट की प्रशंसा करते हुए बड़ी फिक्र के साथ कहते हैं कि पूरे देश में हमारे जिले के प्रति जो माहौल बनाया जा रहा है वो हमारे बच्चों की तरक्की में रोड़ा बन रहा है. बहुत तल्ख भाव से वे कहते हैं “ सबसे खतरनाक मीडिया है. उसका कोई उसूल नहीं रह गया है.” कामरान के भाई नौशाद कहते हैं- “ यकीन नहीं होता, लकड़ी के बैट से गली में क्रिकेट खेलने वाला मेरा भाई विलायत में खेल रहा है.” बहन कहकशां कहती हैं कि बिजली नहीं रहती पर भाईजान के मैच वाले दिन किराए का जनरेटर लेकर पूरे गांव के साथ क्रिकेट देखा जाता है. परिवार के लोग कामरान का क्रिकेट देखने के लिए दक्षिण अफ्रीका जाना चाहते हैं पर घर की माली हालत उन्हें इजाजत नहीं देती.
गरीबी-मुफलिसी की सौगात लिए कामरान के जीवन में पांच साल पहले एक अहम मोड़ आया, जब जिले के ही कोच नौशाद ने उसे मुंबई चलने को कहा था पर वालिद के इंतकाल के चलते वो नहीं जा पाया.
“आजमगढ़ के क्रिकेट का इतिहास बहुत रोचक है ”, कहते हुए मसीउद्दीन संजरी बताते हैं “ 80 के दौर में निजामाबाद में एक बंगाली बाबू हुआ करते थे, जिन पर क्रिकेट का भूत सवार था. जो अक्सर छुट्टियों के बाद अलीगढ़ में पढ़ने वालों के आ जाने पर मैदान में उतर जाता था.” वे याद करते हुए बताते हैं कि शायद यहीं से जिले में टूर्नामेंटों की शुरुवात हुई जिसका केंद्र सरायमीर हुआ करता था. जहां की देन कामरान और नोमान जैसे खिलाड़ी हैं. आजमगढ़ जैसे पिछड़े जिलों में सैकड़ों कामरान और नोमान हैं जिन पर उनके शहर की बिगाड़ी गई छवि का कोई असर नहीं पड़ेगा.दोनों के साथ खेले और साथ ही लखनऊ गए वसीउद्दीन कहते हैं कि दोनों का पढ़ाई में कभी मन नहीं लगा, शायद वे क्रिकेट के लिए ही पैदा हुए हैं. नोमान को फोन करके बाजार में आने के लिए कहते हुए बताते हैं “ दोनों का फार्म-वार्म हम ही लोग भरवाते हैं.”
सरायमीर के इसरौली गांव के रहने वाले मोहम्मद नोमान यूपी अण्डर 22 में खेलते हैं. कामरान और नोमान अल्फा क्लब इसरौली से खेलते थे, जिसके कप्तान नोमान हुआ करते थे. नोमान बताते हैं कि डेढ़-दो साल पहले दोनों लखनऊ गए, जहां कामरान को उबैद कमाल का सानिध्य मिला, वहीं मुझे पूर्व रणजी खिलाड़ी शाहनवाज बख्तियार का. नोमान बताते हैं कि ज्यादा मैच सरायमीर इलाके में होता था और हम लोग टेनिस बाल से खेलते थे. घर दूर होने के कारण कामरान मेरे ही घर रहता था. नोमान जनवरी 08 में हुए यूपीसीए कैंप को दोनों के लिए वरदान मानते हैं. नोमान कहते हैं “ उबैद सर के अण्डर में बीते दस दिनों ने हमारी लाईफ चेंज कर दी और जहां तक मेरा सवाल है तो मेरी पूरी गेंदबाजी को शाहनवाज सर ने निखारा.” उबैद कमाल कहते हैं “ कामरान जब मेरे पास आया था तो उसके रनअप आदि में खामियां थी जिसे मैने काफी हद तक सुधारने की कोशिश की और जहां तक नोमान का सवाल है तो नो डाउट वह भी एक दिन टीम इंडिया की टी शर्ट पहनेगा.” शाहनवाज बख्तियार कहते हैं कि आजमगढ़ जैसे पिछड़े जिलों में सैकड़ों कामरान और नोमान हैं, जिन पर उनके शहर की बिगाड़ी गई छवि का कोई असर नहीं पड़ेगा.
यहां एक तल्ख सच्चाई यह है कि कामरान हो या नोमान सभी ने उसी संजरपुर गांव के मैदान पर अपने क्रिकेटिया जीवन के शुरुआती मैचों को खेला और सीखा जिस पर आज आतंकवादियों के गांव का ठप्पा लगाया गया है. यहीं के तारिक शफीक के साथ आरिफ के घर जाना हुआ, जिस पर देश में हुए कई बम धमाकों का आरोप है. घर की खामोशी को तोड़ते हुए एक आवाज आई “ मेरे बेटे का क्या कसूर था ? सिर्फ यह ना कि उसे पढ़ने के लिए लखनऊ भेज दिया था.” यह बोलते हुए आरिफ की मां फरजाना बेगम आलमारी में भरे पड़े दर्जनों सील्डों और ट्राफियों की तरफ इशारा करते हुए कहती हैं “ मेरा बेटा मुल्क के लिए क्रिकेट खेलना चाहता था पर हुकूमत ने उसे अपने खिलाफ खेल खेलने के झूठे आरोप में फंसा दिया.”
सन्नाटा फिर पसर गया.
रविवार पर राजीव यादव का 29 मई, 2009 को प्रकाशित यह लेख साभार.
Fantastic report by Rajiv Yadav..Congts.
जवाब देंहटाएंवाकई आजमगढ़ का चेहरा बदल रहा है...कामरान जैसे नौजवान इसे नई दिशा देंगें.
जवाब देंहटाएंकामरान खान की सफलता आज इस इलाके में बहुतों के लिये प्रेरणा बन गयी है. यह बात इसलिए भी और काबिले तारीफ है की उन्होंने ऐसी जगह पर रहते हुए सफलता पाई जहाँ दिल्ली और मुंबई जैसे शहरों की तरह अच्छे मैदान और खेलों की सुबिधायें उपलब्ध नहीं है. सुंदर प्रस्तुति.
जवाब देंहटाएंAzamgarh ke liye ek acchi uplabdhi hai. Meri taraf se Kamran ko dher si mubarakbad.
जवाब देंहटाएंBIJALI NAHI RAHATI, KIRAYE KA JANARETAR LEKAR MAICH DEKHA JATA HAI....BAHUT HI DUKH IS PURWANCHAL KA. KAB DEVELOP HOGA.....REALY...BALLIA,GANZIPUR,AZAMGARH,MAU DEWARIA .WAGAIRAH ME BAHUT KUCHH HONA BAKI HAI...SARAKAR KITANA DIN TAK SOYEGI..BAHUT BADHIYA PRASTUTI.
जवाब देंहटाएंकामरान को ढेर सारी मुबारक। आज़मगढ़ को आतंकवाद की नर्सरी कहना पक्षपात व ईर्ष्या का परिचायक है। अपराध अभिलेख ब्यूरो की रिपोर्ट के अनुसार आज तो महाराष्ट्र अपराध के ग्राफ़ में सबसे ऊपर है। आज़मगढ़ का देश की आज़ादी की जंग में अहम योगदान है और इसने हिंदी साहित्य को अनेक विभूतियाँ दी हैं। कामरान नई पल्लव है।
जवाब देंहटाएंbahut badhiya jankari
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