सच मानिए, रचनात्मकता किसी खास-समय और स्थान की मोहताज नहीं होती, आजमगढ़ जेल के एक कैदी हैं- फिरोज अहमद, जिले के ही ठेकमा इलाके के सरायमोहन में चौकीदार थे, हंसी-खुशी जिंदगी चल रही थी। साल भर पहले, एक रात दोस्तों के उकसावे में निकल गए। कुछ 'ऊँच-नीच' करने, नतीजा जेल, बच्चों के साथ बीवी मायके चली गई। झाडुओं की सिंक और दूसरे कागज-गत्तों से कुछ तो भी बनाना शुरू कर दिया। पेंसिल हाथ में आई तो दीवारों का रूख लिया। हर ओर उभरने लगे फिरोज के चित्र। एक दिन जेल अधीक्षकअवधेश मिश्र की निगाह पड़ गई। उसके इन कारनामों पर उन्होंने बाजार से शिल्प कला और चित्रकारी के औजार मंगा कर थमा दिए। देखते ही देखते वह खास बन गया, दूसरे कैदियों की नजर में। मिश्र को बंगलुरू में कैदियों की राष्ट्रीय पेन्सिल ड्राइंग प्रतियोगिता की खबर मिली तो फिरोज के चित्र भी भेजे गए। उन चित्रों को 'ए' ग्रेड के दर्ज वाले सर्टिफिकेट हाल ही जब जेल पहुँचा तो कैदियों में हलचल मच गई, अब काफी खुश है फिरोज।
-सुधीर सिंह
(साभार : इण्डिया टुडे, 18 मई 2011)
-सुधीर सिंह
(साभार : इण्डिया टुडे, 18 मई 2011)
सराहनीय कदम..इससे काफी बदलाव होगा.
जवाब देंहटाएंइस रचनात्मक पहल को सलाम.
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