चार सितंबर 2010 का वह भयावह दिन.. आजमगढ़ जनपद में रास्ते में वैन में लगी गैस किट में शॉर्ट सर्किट की वजह से शोला बनी स्कूली वैन में बच्चे चीख रहे थे। किसी को कुछ समझ में नहीं आ रहा था क्या करें। चालक बच्चों को बचाने की बजाय गेट खोलकर भाग गया। इसी बीच आग ने पूरी वैन को चपेट में ले लिया। इन्हीं बच्चों के बीच वाहन में फंसे कक्षा 7 के छात्र ओमप्रकाश यादव ने जान बचाकर भागने की बजाय साहस का परिचय दिया और आठ बच्चों को सकुशल बाहर निकाला और ऐसा करने के दौरान वह 70 प्रतिशत तक जल गए थे। तीन माह तक वह अस्पताल में जीवन और मौत से संघर्ष कर रहा था। इस दौरान उसकी पढ़ाई भी बाधित हो गयी। खास बात यह हैं कि उसके एक हाथ की प्लास्टिक सर्जरी की भी जरुरत है। वहीं उसके शरीर के घाव अभी तक नहीं भरे हैं. अब उसे इस वीरता के लिए गणतंत्र दिवस प्रधानमंत्री द्वारा संजय चोपड़ा अवार्ड से सम्मानित किया जाएगा। ओमप्रकाश यादव को जब बताया गया कि उसे प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह से मिलने का मौका मिलेगा, तो उसकी खुशी का ठिकाना नहीं रहा। दूसरों की जान बचाने के लिए दाहिना हाथ और चेहरा झुलसा लेने वाले ओम प्रकाश का कहना है कि प्रधानमंत्री से मुलाकात के दौरान इलाज के लिए कहेगा। हादसे के डेढ़ साल बीत चुके हैं, लेकिन उसके परिवार की आर्थिक स्थिति ऐसी नहीं है कि वह जख्मी अंगों की प्लास्टिक सर्जरी करा पाए। ओम प्रकाश यादव ने कहा, "मैं काफी गर्व का अनुभव करता हूं क्योंकि मैंने अपने स्कूल के साथियों का जीवन बचाया। मैं प्रधानमंत्री के हाथों राष्ट्रीय वीरता पुरस्कार पाने को लेकर काफी खुश हूं। मेरा संदेश है कि लोगों को एक-दूसरे की सहायता करनी चाहिए।"
ओमप्रकाश यादव मूलत: आजमगढ़ के बिलरियागंज क्षेत्र के बगवार गांव के निवासी हैं. उनके पिता लालबहादुर एक साधारण किसान हैं। परिवार में तीन बहनें हैं। उनका कहना है कि जिस समय यह घटना हुई उस वक्त तो उनको कुछ समझ में नहीं आ रहा था कि हे भगवान अब क्या होगा। आज जब उनका बेटा सकुशल उनके साथ है तो काफी खुशी है। अब खुशी इस बात की और है कि उनके पुत्र के साहस को सरकार ने समझा और वीरता पुरस्कार से सम्मानित करने का निर्णय लिया। ओमप्रकाश की मां संध्या देवी ने कहा कि साहस का सम्मान तो होना ही चाहिए। गाँव के प्रधान अली अख्तर उर्फ मोती जिन्होंने घटना के समय अपने सहयोगियों के साथ गंभीर रुप से झुलसे बच्चों का अपने वाहन से जिला अस्पताल में भर्ती कराया उनका कहना है कि सच्चे मायने में ओमप्रकाश बहादुर है। इसकी जितनी भी तारीफ की जाय कम है।
-राम शिव मूर्ति यादव
ओमप्रकाश यादव मूलत: आजमगढ़ के बिलरियागंज क्षेत्र के बगवार गांव के निवासी हैं. उनके पिता लालबहादुर एक साधारण किसान हैं। परिवार में तीन बहनें हैं। उनका कहना है कि जिस समय यह घटना हुई उस वक्त तो उनको कुछ समझ में नहीं आ रहा था कि हे भगवान अब क्या होगा। आज जब उनका बेटा सकुशल उनके साथ है तो काफी खुशी है। अब खुशी इस बात की और है कि उनके पुत्र के साहस को सरकार ने समझा और वीरता पुरस्कार से सम्मानित करने का निर्णय लिया। ओमप्रकाश की मां संध्या देवी ने कहा कि साहस का सम्मान तो होना ही चाहिए। गाँव के प्रधान अली अख्तर उर्फ मोती जिन्होंने घटना के समय अपने सहयोगियों के साथ गंभीर रुप से झुलसे बच्चों का अपने वाहन से जिला अस्पताल में भर्ती कराया उनका कहना है कि सच्चे मायने में ओमप्रकाश बहादुर है। इसकी जितनी भी तारीफ की जाय कम है।
-राम शिव मूर्ति यादव
सच ही तो है साहस का सम्मान तो अवश्य होना ही चाहिए साथ ही उसे उसकी वीरता है लिए आर्थिक सहयाता भी प्रदान की जानी चाहिए संदेशम्यी पोस्ट .... समय मिले कभी तो आयेगा मेरी पोस्ट पर आपका स्वागत है
जवाब देंहटाएंसच ओम प्रकाश जी कार्य निश्चय ही सराहनीय है... इनके जज्बे को सलाम.
जवाब देंहटाएंEk sarahniya kary
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