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शनिवार, जुलाई 30, 2011

रचनाधर्मिता के विविध आयामों को सहेजतीं : आकांक्षा यादव

ब्लागिंग-जगत में बहुत कम लोग ऐसे हैं, जो एक साथ ही प्रतिष्ठित पत्र-पत्रिकाओं में भी निरंतर छप रहे हैं. इन्हीं में से एक नाम है-आकांक्षा यादव जी का. आकांक्षा जी कॉलेज में प्रवक्ता के साथ-साथ साहित्य, लेखन और ब्लागिंग के क्षेत्र में भी उतनी ही प्रवृत्त हैं।

इण्डिया टुडे, कादम्बिनी, नवनीत, साहित्य अमृत, वर्तमान साहित्य, अक्षर पर्व, अक्षर शिल्पी, युगतेवर, आजकल, उत्तर प्रदेश, मधुमती, हरिगंधा, पंजाब सौरभ, हिमप्रस्थ, दैनिक जागरण, जनसत्ता, अमर उजाला, राष्ट्रीय सहारा, स्वतंत्र भारत, राजस्थान पत्रिका, वीणा, अलाव, परती पलार, हिन्दी चेतना (कनाडा), भारत-एशियाई साहित्य, शुभ तारिका, राष्ट्रधर्म, पांडुलिपि, नारी अस्मिता, चेतांशी, बाल भारती, बाल वाटिका, गुप्त गंगा, संकल्य, प्रसंगम, पुष्पक, गोलकोंडा दर्पण इत्यादि शताधिक पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित आकांक्षा यादव अंतर्जाल पर भी उतनी ही सक्रिय हैं. विभिन्न वेब पत्रिकाओं- अनुभूति, सृजनगाथा, साहित्यकुंज, साहित्यशिल्पी, वेब दुनिया हिंदी, रचनाकार, ह्रिन्द युग्म, हिंदीनेस्ट, हिंदी मीडिया, हिंदी गौरव, लघुकथा डाट काम, उदंती डाट काम, कलायन, स्वर्गविभा, हमारी वाणी, स्वतंत्र आवाज डाट काम, कवि मंच, इत्यादि पर आपकी रचनाओं का प्रकाशन निरंतर होता रहता है. विकिपीडिया पर भी आपकी तमाम रचनाओं के लिंक उपलब्ध हैं।

अपने व्यक्तिगत ब्लॉग 'शब्द-शिखर' के साथ-साथ पतिदेव कृष्ण कुमार जी के साथ युगल रूप में बाल-दुनिया, सप्तरंगी प्रेम, उत्सव के रंग ब्लॉगों का सञ्चालन उन्हें अग्रणी महिला ब्लागरों की पंक्ति में खड़ा करता है. इसके अलावा भी वे तमाम ब्लॉगों से जुडी हुयी हैं.

30 जुलाई, 1982 को सैदपुर, गाजीपुर (उत्तर प्रदेश) के एक प्रतिष्ठित परिवार में जन्मीं और सम्प्रति भारत के सुदूर अंडमान में हिंदी ब्लागिंग की पताका फहरा रहीं आकांक्षा जी न सिर्फ हिंदी को लेकर सचेत हैं बल्कि इसके प्रचार-प्रसार में भी भूमिका निभा रही हैं. दो दर्जन से अधिक प्रतिष्ठित पुस्तकों/ संकलनों में उनकी रचनाएँ प्रकाशित हो चुकी हैं तो आकाशवाणी से भी रचनाएँ तरंगित होती रहती हैं. नारी विमर्श, बाल विमर्श और सामाजिक मुद्दों से सम्बंधित विषयों पर आप प्रमुखता से लेखन कर रही हैं. कृष्ण कुमार जी के साथ "क्रांति-यज्ञ:1857-1947 की गाथा" पुस्तक का संपादन कर चुकीं आकांक्षा जी के व्यक्तित्व-कृतित्व पर चर्चित बाल-साहित्यकार डा. राष्ट्रबंधु द्वारा सम्पादित "बाल साहित्य समीक्षा (कानपुर)" पत्रिका ने विशेषांक भी जारी किया है।

विभिन्न प्रतिष्ठित सामाजिक-साहित्यिक संस्थानों द्वारा विशिष्ट कृतित्व, रचनाधर्मिता और सतत् साहित्य सृजनशीलता हेतु उन्हें दर्जनाधिक सम्मान, पुरस्कार और मानद उपाधियाँ प्राप्त हैं. भारतीय दलित साहित्य अकादमी द्वारा ‘वीरांगना सावित्रीबाई फुले फेलोशिप सम्मान‘, राष्ट्रीय राजभाषा पीठ इलाहाबाद द्वारा ’भारती ज्योति’, ‘‘एस0एम0एस0‘‘ कविता पर प्रभात प्रकाशन, नई दिल्ली द्वारा पुरस्कार सहित तमाम सम्मान शामिल हैं. आकांक्षा जी के पतिदेव श्री कृष्ण कुमार यादव भी चर्चित साहित्यकार और ब्लागर हैं, वहीँ इस दंपत्ति की पुत्री अक्षिता (पाखी) भी 'पाखी की दुनिया' के माध्यम से अभिव्यक्त होती रहती है. सहजता और विनम्रता की प्रतिमूर्ति आकांक्षा यादव अपनी रचनाधर्मिता के बारे में कहती हैं कि-'' मैंने एक रचनाधर्मी के रूप में रचनाओं को जीवंतता के साथ सामाजिक संस्कार देने का प्रयास किया है. बिना लाग-लपेट के सुलभ भाव-भंगिमा सहित जीवन के कठोर सत्य उभरें, यही मेरी लेखनी की शक्ति है.''

आशा की जानी चाहिए कि आकांक्षा जी यूँ ही अपने लेखन में धार बनाये रखें, निरंतर लिखती-छपती रहें और हिंदी साहित्य और ब्लागिंग को समृद्ध करती रहें.

जन्म-दिन पर असीम शुभकामनाओं सहित...!!
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रत्नेश कुमार मौर्य :
जन्म- 14 जुलाई, 1977 को. मूलत: उत्तर प्रदेश के मऊ जनपद के निवासी. आरंभिक शिक्षा-दीक्षा जवाहर नवोदय विद्यालय, जीयनपुर-आजमगढ़ और तत्पश्चात इलाहाबाद विश्वविद्यालय से दर्शन शास्त्र में परास्नातक. सम्प्रति उत्तर प्रदेश सरकार के अधीन कौशाम्बी जनपद में अध्यापन पेशे में संलग्न. अध्ययन, लेखन का शौक. फ़िलहाल इलाहाबाद में निवास. दर्शन शास्त्र का विद्यार्थी होने के चलते कई बार यह जीवन भी दर्शन ही लगने लगता है.अंतर्जाल पर ‘शब्द-साहित्य’ ब्लॉग के माध्यम से सक्रियता !!

सोमवार, जुलाई 18, 2011

खड़ी बोली के प्रथम महाकाव्यकार : अयोध्या सिंह उपाध्याय 'हरिऔध'

आजमगढ़ की धरती को यह सौभाग्य प्राप्त है की यहाँ तमाम साहित्यकारों और मनीषियों ने जन्म लिया और इसे कर्म-भूमि बने. उन्हीं में से एक हैं- अयोध्या सिंह उपाध्याय ‘हरिऔध'.अयोध्यासिंह उपाध्याय 'हरिऔध' (15 अप्रैल, 1865-16 मार्च, 1947) हिन्दी के एक सुप्रसिद्ध साहित्यकार है। यह हिंदी साहित्य सम्मेलन के सभापति रह चुके हैं और सम्मेलन द्वारा विद्यावाचस्पति की उपाधि से सम्मानित किये जा चुके हैं। प्रिय प्रवास हरिऔध जी का सबसे प्रसिद्ध और महत्वपूर्ण ग्रंथ है। यह हिंदी खड़ी बोली का प्रथम महाकाव्य है और इसे मंगलाप्रसाद पुरस्कार प्राप्त हो चुका है। 15 अप्रैल,1865 को आज़मगढ़ के निज़ामाबाद क़स्बे में जन्मे अयोध्या सिंह उपाध्याय 'हरिऔध' के पिता का नाम भोलासिंह और माता का नाम रुक्मणि देवी था। अस्वस्थता के कारण हरिऔध जी का विद्यालय में पठन-पाठन न हो सका अतः इन्होने घर पर ही उर्दू, संस्कृत, फारसी, बंगला एवं अंग्रेजी का अध्ययन किया। 1883 में आप निजामाबाद के मिडिल स्कूल के हेडमास्टर हो गए। 1890 में कानूनगो की परीक्षा पास करने के बाद आप कानूनगो बन गए। सन 1923 में पद से अवकाश लेने पर काशी हिंदू विश्वविद्यालय में प्राध्यापक बने । 16 मार्च ,सन 1947 को आपका निधन हो गया।

खड़ी बोली के प्रथम महाकाव्यकार माने जाने वाले 'हरिऔध' जी का सृजनकाल हिन्दी के तीन युगों में विस्तृत है- भारतेन्दु युग, द्विवेदी युग और छायावादी युग। इसीलिये हिन्दी कविता के विकास में ‘हरिऔध’ जी की भूमिका नींव के पत्थर के समान है। उन्होंने संस्कृत छंदों का हिन्दी में सफल प्रयोग किया है। ‘प्रियप्रवास’ की रचना संस्कृत वर्णवृत्त में करके जहां उन्होंने खड़ी बोली को पहला महाकाव्य दिया, वहीं आम हिन्दुस्तानी बोलचाल में ‘चोखे चौपदे’, तथा ‘चुभते चौपदे’ रचकर उर्दू जुबान की मुहावरेदारी की शक्ति भी रेखांकित की। प्रियप्रवास और वैदेही वनवास आपके महाकाव्य हैं। चोखे चौपदे, चुभते चौपदे, कल्पलता, बोलचाल, पारिजात और हरिऔध सतसई मुक्तक काव्य की श्रेणी में आते हैं। ठेठ हिंदी का ठाठ और अधखिला फूल नाम से आपने उपन्यास भी लिखे। इसके अतिरिक्त नाटक और आलोचना में भी आपने उल्लेखनीय योगदान दिया है।

आचार्य रामचंद्र शुक्ल ने हिन्दी साहित्य के इतिहास में हरिऔध जी का परिचय देते हुए लिखा है- “यद्यपि 'हरिऔध' जी इस समय खड़ी बोली के और आधुनिक विषयों के ही कवि प्रसिध्द हैं, पर प्रारंभकाल में ये भी पुराने ढंग की श्रृंगारी कविता बहुत सुंदर और सरस करते थे। इनके निवास स्थान निज़ामाबाद में सिख संप्रदाय के महंत बाबा सुमेरसिंह जी हिन्दी काव्य के बड़े प्रेमी थे। उनके यहाँ प्राय: कवि समाज एकत्र हुआ करता था, जिसमें उपाध्याय जी भी अपनी पूर्तियाँ पढ़ा करते थे। इनका हरिऔध उपनाम उसी समय का है। इनकी पुराने ढंग की कविताएँ ‘रसकलस’ में संगृहीत हैं जिसमें इन्होंने नायिकाओं के कुछ नए ढंग के भेद रखने का प्रयत्न किया है।''


हरिऔध जी ने ठेठ हिंदी का ठाठ, अधखिला फूल, हिंदी भाषा और साहित्य का विकास आदि ग्रंथ-ग्रंथों की भी रचना की, किंतु मूलतः वे कवि ही थे उनके उल्लेखनीय ग्रंथों में शामिल हैं: -

प्रिय प्रवास
वैदेही वनवास
पारिजात
रस-कलश
चुभते चौपदे,चौखे चौपदे
ठेठ हिंदी का ठाठ
अध खिला फूल
रुक्मिणी परिणय
हिंदी भाषा और साहित्य का विकास

अयोध्या सिंह उपाध्याय 'हरिऔध' के बारे में ज्यादा जानकारी के लिए इस लिंक को क्लिक करें.