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रविवार, जनवरी 20, 2013

मुबारकपुर की साड़ियों की चमक लौट आये तो क्या कहने!


शबाना आज़मी आज़मगढ़ की रहने वाली हैं आप लोग जानते भी होंगे।ये वही आज़मगढ़ हैं जो अपने बदनामी के दागों को बस धोने में लगा रहता हैं।बहुत सारे जख्म भरते भी नहीं हैं कि नए बन जाते हैं.
खैर आज़मगढ़ की अपनी एक पहचान लम्बे समय से मुबारकपुर की साड़ियों की वजह से भी हैं।बनती तो मुबारकपुर में हैं लेकिन बनारस से जुड़ कर कारोबार चलने के कारण बनारसी साड़ी के नाम से ही विदेशों में मशहूर हैं ।हर दुल्हन की पसंद बनारसी ही होती हैं जीवन में कभी बनारसी साड़ी न भी पहनी हो तो शादी के समय को जरूर पहनती हैं ।लेकिन आज़मगढ़ में बनने वाली ये बनारसी साड़ियाँ बहुत उदास हैं।कभी राहुल गाँधी ने इनको बनाने वालों की समस्याएँ सुनी तो कभी किसी और ने लेकिन बुनकर समुदाय के लोगों का दर्द कोई कम नहीं कर पाया।
 
अभी बीते दिनों शबाना आज़मी अपने गृह जनपद आज़मगढ़ में आई हुई थी। उनका अपने गाँव मेजवा से बहुत गहरा लगाव हैं ।अपने अब्बू कैफ़ी आज़मी के सपने को पूरा करने में 'मुन्नी' ने कोई कसर नहीं छोड़ा हैं। महिलाओं को मजबूत करने और उनके हुनर को अंतरास्ट्रीय पटल पर मेज़वा क्षेत्र में खुले चिकनकारी केन्द्रों के माध्यम से ले जाया जा रहा हैं। एक तरफ शबाना के इन चिकनकारी केन्द्रों पर बनने वाले कपडे मुंबई से होते हुए समुदर पार अपनी धूम मचा रहे हैं वहीँ दूसरी तरफ मुबारकपुर की साड़ियाँ बनाने वाले बदहाली के आंसू रो रही हैं।
 
  बीते दिनों शबाना का जन्मदिन था और वो आज़मगढ़ में ही थी।जन्मदिन पर शबाना को बधाई देने जनपद के जिलाधिकारी प्रांजल यादव पहुचे।शबाना को हैप्पी बर्थ डे बोलने के साथ ही साथ उन्होंने बनारसी साड़ी भी भेट की।इस बनारसी साड़ी के डिब्बे के साथ उन्होंने शबाना को बनारसी साड़ियों का दर्द भी सुना डाला । शबाना ने जिलाधिकारी से बनारसी साड़ियों का दर्द सुनने के बाद उसके विकास और प्रोत्साहन का भरोसा दिलाया। दिल्ली और मुंबई के कई डिजाइनरों के नंबर भी दिए। वाकई इस पहल सेअगर मुबारकपुर की साड़ियों की चमक लौट आये तो  क्या कहने।

2 टिप्‍पणियां:

  1. वाकई इस पहल सेअगर मुबारकपुर की साड़ियों की चमक लौट आये तो क्या कहने..Khushamdi.

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  2. KHABAR KE SHROT KA TO KAM SE KAM JIGRA KAR DE KI KAHA SE LI HAIN.

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